परिन्दो मे सुगबुगाहटहै, बज्म मे खलबली तो हैं मेरे लहू से दश्त मे कुछ रोशनी तो.है झिलमाती है मेरी सदा अंधेरों मे आज भी मेरे शब्दों मे खुदा की बंदगी तो है भीड़ मे सफर है तन्हाई मे आवारगी है शुक्र है अभी जिन्दा जिन्दा-दिली तो है वो फकीर हैं सबसे जुदा है तन्हा है उसके हिस्से मे जहाँ की मयकशी तो है कोई जीत कर हारे या हार कर जीते मेरे हिस्से ना सही तेरे हिस्से मे खुशी तो है मेरे लहू से दश्त मे कुछ रौशनी तो है राजीव मिश्रा #NojotoQuote नयनसी परमार