मेरी ज़िंदगी में बस एक तेरी ही कमी है। मुकद्दर में इंतज़ार और आँखों में नमी है। लिखने वाले लिख कर चले गए दास्तां-ए-इश्क़, हमारी किस्मत की भला कब हमारी रज़ा से बनी है। जो हो न सका पूरा तू वो एक अदद ख़्वाब मेरा, कोई खिलता हुआ गुलाब हुआ फिर पर्दानशीं है। न मंज़र-ए-मोहब्बत टिकता है इन निगाहों में अब, न सिर पर आसमान है और न पैरों तले सरजमीं है। कमी तो रह जाएगी तेरे बिना दुनिया की हर शह में, इस दुनिया की नूर-ए-ख़्वाहिश तुझसे ही तो बनी है। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1103 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।