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जनहित की रामायण - 1 खर्च बढ़ रहा, कमाई घट रही, ये

जनहित की रामायण - 1

खर्च बढ़ रहा, कमाई घट रही, ये बात किसी से छुपी नहीं है,
दीन धनी की खाई बढ़ रही, ये बात सभी को दीख रही है !
चारों खंभों की आय में, आए दिन हो जात इजाफा,
जन की आयकर की छूट, सालों साल वहीं की वहीं है !!

आखिर जन की सत्ता है ये, या जन है सत्ता का गुलाम,
जनता मालिक देश की, जनहित ही है जायज मुकाम !
स्वहित सारे जप रहे, पक्ष विपक्ष के नेता सारे,
नेता भत्ते वृद्धि बिल पे एक मत से खिलते गुलफाम !!

जन दौडाया जा रहा, अब भिखारियत की ओर,
छिन रही है रोजी रोटी, छिन रहा रोटी का कौर !
हो जाये कमाई फिर भी गर, उस पर गिद्ध सी नजर,
बैंक जमा में टूट रही अटूट सुरक्षितता की डोर !!

आपस में जहां हो भरोसा, लेन देन पे चला दी गदा,
खून के रिश्ते छोड़ के, पूंजी लेन देन किया गया मना !
इस पर भी गर कर ले कोई, दो सौ फीसदी का है दंड,
अपनी कमाई अपने मन से दे न सकें ये तो है सजा !!

गुलामियत का दौर भी, इससे क्या होगा बुरा,
किसान समुदाय महीनों से, सड़को पे बिखरा पड़ा !
जो कानून है नामंजूर, लादे क्यूं जा रहे उन पर,
पग पग क्यूं की जा रही, दुभर जन जन की गुजर ?

प्रश्न कई, उत्तर नहीं है, सत्ता में मगरूरी है,
लोकतंत्र में जनहित जपना निहायत ही जरूरी है !
जनता सारी देख रही है, भक्तों की भी खुल रही आंखे,
भगवान के घर देर है, अंधेर हरगिज़ नहीं है !!

- आवेश हिंदुस्तानी 26.02.2021

©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan
#AaveshVaani 
#Rojiroti
जनहित की रामायण - 1

खर्च बढ़ रहा, कमाई घट रही, ये बात किसी से छुपी नहीं है,
दीन धनी की खाई बढ़ रही, ये बात सभी को दीख रही है !
चारों खंभों की आय में, आए दिन हो जात इजाफा,
जन की आयकर की छूट, सालों साल वहीं की वहीं है !!

आखिर जन की सत्ता है ये, या जन है सत्ता का गुलाम,
जनता मालिक देश की, जनहित ही है जायज मुकाम !
स्वहित सारे जप रहे, पक्ष विपक्ष के नेता सारे,
नेता भत्ते वृद्धि बिल पे एक मत से खिलते गुलफाम !!

जन दौडाया जा रहा, अब भिखारियत की ओर,
छिन रही है रोजी रोटी, छिन रहा रोटी का कौर !
हो जाये कमाई फिर भी गर, उस पर गिद्ध सी नजर,
बैंक जमा में टूट रही अटूट सुरक्षितता की डोर !!

आपस में जहां हो भरोसा, लेन देन पे चला दी गदा,
खून के रिश्ते छोड़ के, पूंजी लेन देन किया गया मना !
इस पर भी गर कर ले कोई, दो सौ फीसदी का है दंड,
अपनी कमाई अपने मन से दे न सकें ये तो है सजा !!

गुलामियत का दौर भी, इससे क्या होगा बुरा,
किसान समुदाय महीनों से, सड़को पे बिखरा पड़ा !
जो कानून है नामंजूर, लादे क्यूं जा रहे उन पर,
पग पग क्यूं की जा रही, दुभर जन जन की गुजर ?

प्रश्न कई, उत्तर नहीं है, सत्ता में मगरूरी है,
लोकतंत्र में जनहित जपना निहायत ही जरूरी है !
जनता सारी देख रही है, भक्तों की भी खुल रही आंखे,
भगवान के घर देर है, अंधेर हरगिज़ नहीं है !!

- आवेश हिंदुस्तानी 26.02.2021

©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan
#AaveshVaani 
#Rojiroti
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Ashok Mangal

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