White शिकायते नहीं है गैरो से, हमे तो अपनो ने रुलाया। चाहत थी संग जीने की, पर सबने ठुकराया। सिमट गए ज़माने के आंचल में, अपने हर सपनों को भुलाया। दहलीज भी न लांघ सके, नक़ाब संस्कारों का पहनाया। किससे करें ये शिकायतें सारी, ये ज़माना खुदा ने भी न बनाया। अपनी हर तमन्ना का बलिदान दिया, हर कदम सोच समझकर उठाया। क्या जिएं इस दस्तूर में, जहां खुदगर्जी ने अपना आशियाना बनाया। महफिले तो सबने सजायी थी, पर वक्त ने वक्त रहते सिखाया। मंज़र कुछ ऐसा था ज़माने का, जंहा सांसों को भी जीना न आया। शिकायतें नहीं है गैरो से, हमे तो अपनों ने रुलाया। ©आधुनिक कवयित्री शिकायतें........