पंछी गौरैया तू लौट आ मेरे आंगन में, तिनका - तिनका जोड़कर , बनाया था उसने आसियाना . जाने आज कहाँ चली गई उस आसमान में , हर सुबह गूंजती , उसकी चहकने कि आवाज मेरे मकान में , ओ गौरैया तू लौट आ , मेरे आंगन में ! पतझड़ का मौसम बीत चुका है , बारिश होने लगी है , पेड़ो पर झूले डले है , देख सखियाँ भी कजली गाने लगी है । हरियाली फैली है धरा पर , ताल - तलैया भी जी उठे है ,, अब तो मेघ भी बरस कर चले गए सावन में , ओ गौरैया तू लौट आ मेरे आंगन में ! धरती का सीना चीर , किसान ने कुछ बीज वो दिये है, नन्हें - नन्हें पौधे सूरज का साथ पाकर खिलने लगे है , चैत का महीना भी आ गया . फसल पक चुकी है , अब काटना बाकी है , फिर दान होगी खलिहान में ,, ओ गौरैया तू लौट आ मेरे आंगन में ! बचपन गुजर चुका है , जिम्मेदारियाँ भी बढ़ गई है , आज मेरी बेटी ने मेरी ओर , पहला कदम बढ़ाया है , मै जीना चाहता हूँ . फिर से मेरा बचपन उसके बचपन में , ओ गौरैया तू लौट आ मेरे आंगन में । ©Deepak Kushwah #GauraiyaTumheaanahoga #birdslove # # #पंछी