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सूखा पत्ता हूँ मैं लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पह

सूखा पत्ता हूँ मैं लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

थोड़ी खिज़ा सि क्या आई कि बिखरा दिया मुझे उन दरख्तों कि बांहो ने,
वो पतझड़ कि हवा सि क्या आई कि बिखरा दिया मुझे उन दरख्तों कि बांहो ने,
हाँ सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का, लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

कभी अकड़ता था मैं भी अपनी बेपरवाह बेफिक्र हरी भरी सि ज़वानियों में, 
सुला देता था भटकते राहगीरों को महकती हवा कि सरर सरर सि कहानियों में।

अब कुचलने को हूंँ बेखबर बेरहम कदमों के तले तो क्या कहें क्या करें, 
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

कभी गुलज़ार था अब लाचार सा बहता जा रहा हूँ मैं,
हवाएँ जो मुझसे टकरा रुख बदल देती थीं अपना, अब बेरूखी को उनकी सहता जा रहा हूँ मैं।

लगा था जो सुबह कि खुमारी में फिसल गईं थीं ओस कि बूँदें उनका दीदार कर पाउँगा,
क्या पता था अब उनसे मिल कीचड़ का बाज़ार बन जाऊँगा।
सोच रहा हूँ वक्त के हिसाब से बनती बदलती खत्म होती जिंदगी के चले जाने से पहले,
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले। #shaayavita #duniya #badaltiduniya #waqt #patta #sukoon #kahaan #zindagi
सूखा पत्ता हूँ मैं लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

थोड़ी खिज़ा सि क्या आई कि बिखरा दिया मुझे उन दरख्तों कि बांहो ने,
वो पतझड़ कि हवा सि क्या आई कि बिखरा दिया मुझे उन दरख्तों कि बांहो ने,
हाँ सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का, लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

कभी अकड़ता था मैं भी अपनी बेपरवाह बेफिक्र हरी भरी सि ज़वानियों में, 
सुला देता था भटकते राहगीरों को महकती हवा कि सरर सरर सि कहानियों में।

अब कुचलने को हूंँ बेखबर बेरहम कदमों के तले तो क्या कहें क्या करें, 
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले।

कभी गुलज़ार था अब लाचार सा बहता जा रहा हूँ मैं,
हवाएँ जो मुझसे टकरा रुख बदल देती थीं अपना, अब बेरूखी को उनकी सहता जा रहा हूँ मैं।

लगा था जो सुबह कि खुमारी में फिसल गईं थीं ओस कि बूँदें उनका दीदार कर पाउँगा,
क्या पता था अब उनसे मिल कीचड़ का बाज़ार बन जाऊँगा।
सोच रहा हूँ वक्त के हिसाब से बनती बदलती खत्म होती जिंदगी के चले जाने से पहले,
कि सूखा पत्ता हूँ मैं बिना वज़ूद का लहरा रहा हूँ ज़मी मे समाने से पहले। #shaayavita #duniya #badaltiduniya #waqt #patta #sukoon #kahaan #zindagi