#खुली किताब# वो रोज़ मेरी कविताओं को पढ़ता है, और ढूढता है खुद को मेरे अल्फ़ाज़ों में। वो रोज़ मेरी कविताओं पर गौर करता है पर नहीं पढ़ा अपना नाम मेरी मन की खुली किताबों में मेरे मन के भीतर का शोर भी सुन लिया करो"मेरे हमदम" मेरे चुप हुए अल्फ़ाज़ पढ़ लो,मत ढूढों कुछ भी बन्द किताबों में ©Richa Dhar #kitaabein खुली किताब