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गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस में लिखा है

गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस में लिखा है,

कलयुग केवल नाम अधारा I सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा II 

अर्थ: कलयुग में केवल राम नाम का जाप करने मात्र से मनुस्य भव बंधन से मुक्त होकर भवसागर पार हो जायेगा I


भावार्थः  कलयुग के प्रभाव को समझने वाले ये जानते थे कि कलिकाल मे  मनुष्य धर्म कर्म  से विमुख होकर सांसारिक मोह माया में संलिप्त रहेगा, उसे भगवत भजन में अरुचि तथा कलयुगी व्यसनों के प्रति घोर आशक्ति  होगी, चूँकि गोस्वामी तुलसीदास जी भविष्य द्रष्टा थे, अतः उन्होंने मनुष्य को धर्म-कर्म की तरफ जोड़ने के लिए ये चौपाई लिखी थी अभिप्राय
ये था कि मनुष्य अपनी मुक्ति के उद्देश्य से जब श्री राम नाम का सुमिरन बारम्बार करेगा, तो उसे श्री राम के बारे में जानने 
की उत्सुकता होगी और वो श्रीराम चरित मानस एवं अन्य धर्म ग्रंथो का अध्ययन करेगा, जिससे उसे मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों का ज्ञान होगा, और अगर श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों में से मनुष्य हजरावां भाग भी आत्मसात कर लेगा तो निसन्देह मनुष्य सभी बंधनो से मुक्त होकर भव सागर पार हो जायेगा I

उदाहरण:   जिस प्रकार भोजन -भोजन कहने मात्र से भूक नहीं शांत होती, एवं पानी - पानी कहने मात्रा से प्यास नहीं बुझती अपितु भूक के लिए भोजन एवं प्यास के लिए पानी को ग्रहण  करने के उपरांत ही भूक एवं प्यास शांत होता है, उसी प्रकार केवल राम नाम जपने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती अपितु अपने आचरण में श्री राम के आदर्शो एवं मूल्यों को आत्मसात करने के उपरांत ही मुक्ति मिलती है I
 
जै श्री सीता राम I                                    ✍️विश्व विजय राम नवमी
गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस में लिखा है,

कलयुग केवल नाम अधारा I सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा II 

अर्थ: कलयुग में केवल राम नाम का जाप करने मात्र से मनुस्य भव बंधन से मुक्त होकर भवसागर पार हो जायेगा I


भावार्थः  कलयुग के प्रभाव को समझने वाले ये जानते थे कि कलिकाल मे  मनुष्य धर्म कर्म  से विमुख होकर सांसारिक मोह माया में संलिप्त रहेगा, उसे भगवत भजन में अरुचि तथा कलयुगी व्यसनों के प्रति घोर आशक्ति  होगी, चूँकि गोस्वामी तुलसीदास जी भविष्य द्रष्टा थे, अतः उन्होंने मनुष्य को धर्म-कर्म की तरफ जोड़ने के लिए ये चौपाई लिखी थी अभिप्राय
ये था कि मनुष्य अपनी मुक्ति के उद्देश्य से जब श्री राम नाम का सुमिरन बारम्बार करेगा, तो उसे श्री राम के बारे में जानने 
की उत्सुकता होगी और वो श्रीराम चरित मानस एवं अन्य धर्म ग्रंथो का अध्ययन करेगा, जिससे उसे मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों का ज्ञान होगा, और अगर श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों में से मनुष्य हजरावां भाग भी आत्मसात कर लेगा तो निसन्देह मनुष्य सभी बंधनो से मुक्त होकर भव सागर पार हो जायेगा I

उदाहरण:   जिस प्रकार भोजन -भोजन कहने मात्र से भूक नहीं शांत होती, एवं पानी - पानी कहने मात्रा से प्यास नहीं बुझती अपितु भूक के लिए भोजन एवं प्यास के लिए पानी को ग्रहण  करने के उपरांत ही भूक एवं प्यास शांत होता है, उसी प्रकार केवल राम नाम जपने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती अपितु अपने आचरण में श्री राम के आदर्शो एवं मूल्यों को आत्मसात करने के उपरांत ही मुक्ति मिलती है I
 
जै श्री सीता राम I                                    ✍️विश्व विजय राम नवमी

राम नवमी