लफ्ज़ एक से हैं मगर, नजरिए में फर्क भारी है। यहाँ हर किसी की अपनी, एक अलग अदाकारी है। रंगसाज़ की रंगों से हो जैसे, मेरी अल्फाजों से यारी है। दर्जी की कपड़ों पर जैसे, मेरी शब्दों की बुनकारी है। सुकूँ की नींद हो जिसमें, वैसे सपनों की सवारी है। जहाँ भर की रंजिशों को, अब कागज पे उतारने की तैयारी है। लोग अक्सर कहते हैं मुझसे, ये बेचैनी है या कोई बिमारी है। हम कहते है ये जो तहरीर है, ये शिद्दत हमारी है। ©Deepu #tehreer