White रमणीय हे रमणीय! तुम मंद मुस्कान की तीव्र धार, मानों कल-कल करती प्रवाह हो तुम। सजग ये तेरे हाथ कलम पर, मानों बहती नौका की पतवार हो तुम। कल-कल करती तेरी कलरव, गोमुख से निरंतरता की, सागर तक की पहचान हो तुम। ये शीत, ग्रीष्म, हेमंत, शिशिर, पतझड़ से बसंत की आगाज हो तुम। घास, वन, ये शंकुधारी वृक्ष, अनुकूलनशीलता की गहरी थाह हो तुम। फलदार वृक्षों की ऊंचाई पर, मानों विनम्रता की श्रृंगार हो तुम। भला! करु मैं तेरा कैसे बखान ? सीखते रहने की प्रतिमान हो तुम।। ©Saurav life #Sad_Status #sauravlife this poetry is dedicated to a my classmate and she deserve it.