बहुत सारा वक्त, गुजरने के बाद आई, उसे मेरी याद, मेरे मरने के बाद आई। शर्म आई या जमीर ने धिक्कारा उसे, या खुद की ही नजर में, गिरने के बाद आई। मगर अब फायदा क्या था मुझे, उस मौसमें बहार का, जो पूरी तरह से बाग बगीचे, उजड़ने के बाद आई। मेरी किस्मत भी हर मौसम में, मुझे छलती रही यारो, साली सर्दी भी स्वेैटर, उधडने के बाद आई। वैसे तो मुझे हंसे जमाना हो गया था,मेरी आखरी हंसी, उसकी हथेली, मेरी हथेली पर रगड़ने के बाद आई। और विरह के नाग ने, डस लिया था मुझे, संजीवनी आई तो जरूर, मगर मेरी सांस थमने के बाद आई। 'ओमबीर काजल' की आखिरी शिकायत, बस यही थी उससे, कि यार तुझे क्या करना था, और तू क्या करने के बाद आई। ©Ombir Kajal मरने के बाद आई