काली बदली गगन घिर आई अहा सावन संग बरखा आई। चुनरी हरी भरी धानी हो आई देख भूमि भी मंद मंद मुस्काई। बीता सावन राखी पूर्णिमा आई रंग बिरंगी राखी देखो बहना लाई। पक रहे पकवान घेवर और मिठाई जब बहना आई घर में ख़ुशियाँ छाई। हँसी ठिठोली में बचपन की कथा सुनाई कैसे बातों बातों में करते थे हम लड़ाई। अपनी मूर्खताओं की मिलकर हँसी उड़ाई पापा मम्मी कैसे भाई की पिटाई लगवाई। आज सोचा तो दुखा मन आँख भर आई दुआ है हर बहन का जरूर हो एक भाई। धागा प्रेम का पहनता है हर बहन से हर भाई अनपढ़ रहे पुरखों ने बहुत सुंदर परम्परा बनाई। काली बदली गगन घिर आई अहा सावन संग बरखा आई। चुनरी हरी भरी धानी हो आई देख भूमि भी मंद मंद मुस्काई। बीता सावन राखी पूर्णिमा आई रंग बिरंगी राखी देखो बहना लाई।