भटकते रहे हम दरबदर खुशियों की तलाश में, खुशियों की तलाश ने हमें आवारा बना दिया, चाहत थी मेरी ताउम्र अपनों का साथ बना रहे, खुशियों की तलाश ने हमें सबसे दूर कर दिया। दुनियाँ में खुशियों को तलाश करते करते हमने खुद से ही खुद को खोने का सौदा कर लिया, चाहत थी अपनों को गमों के बदले खुशियांँ दूँ, खुशियों की तलाश ने मेरा सुकून छीन लिया। जमाने में अपनों के सिवा किसी के जज्बातों की, किसी को कोई समझ और कदर ही नहीं होती, समझ में हमें तब आया जब खुशियों की तलाश में हमने सारे के सारे ही अपने रिश्तों को खो दिया। ♥️ Challenge-544 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।