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खिलके महकी जो कली रात के अधियारे में मेरी सोई हुई

खिलके महकी जो कली 
रात के अधियारे में
मेरी सोई हुई सी 
चाहतें जगा के गई

मैंने पूछा उसे 
खुशबू कहाँ से लाई है
उसने फिर कुछ न कहा
बस यूं ही शरमा के गई

मेरी सोई हुई सी
चाहतें जगा के गई


-अशरफ फ़ानी कबीर खिलके महकी जो कली 
रात के अधियारे में
मेरी सोई हुई सी 
चाहतें जगा के गई

मैंने पूछा उसे 
खुशबू कहाँ से लाई है
उसने फिर कुछ न कहा
खिलके महकी जो कली 
रात के अधियारे में
मेरी सोई हुई सी 
चाहतें जगा के गई

मैंने पूछा उसे 
खुशबू कहाँ से लाई है
उसने फिर कुछ न कहा
बस यूं ही शरमा के गई

मेरी सोई हुई सी
चाहतें जगा के गई


-अशरफ फ़ानी कबीर खिलके महकी जो कली 
रात के अधियारे में
मेरी सोई हुई सी 
चाहतें जगा के गई

मैंने पूछा उसे 
खुशबू कहाँ से लाई है
उसने फिर कुछ न कहा