खिलके महकी जो कली रात के अधियारे में मेरी सोई हुई सी चाहतें जगा के गई मैंने पूछा उसे खुशबू कहाँ से लाई है उसने फिर कुछ न कहा बस यूं ही शरमा के गई मेरी सोई हुई सी चाहतें जगा के गई -अशरफ फ़ानी कबीर खिलके महकी जो कली रात के अधियारे में मेरी सोई हुई सी चाहतें जगा के गई मैंने पूछा उसे खुशबू कहाँ से लाई है उसने फिर कुछ न कहा