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सोचती हूं हर लम्हा हर पल कि जिंदगी के मौसम गए है ब

सोचती हूं हर लम्हा हर पल
कि जिंदगी के मौसम गए है बदल
क्यों है उसे मुझसे इतने रंज और शिकवे
दिल में है दर्द, छा गए आंखों में बादल
               जिसका मैं सुकून थी, वो पा मुझे बेचैन है
               साथ होकर भी प्यार की लौ कहीं 
               गुम जैसे अंधेरी रैन है.....
मान बैठे जिसे सबकुछ अपना, 
उसे ये एहसास कहां
की जुड़ा है हर सुख दुख उस से
भूल बैठी मैं दो जहां
               सहूंगी तेरी हर बेरुखी, 
               कभी तो होगी तेरे मन में भी हलचल
               गुमसुम इन आंखों को देख
               शायद जाएं तेरे इरादे बदल
अब और सहा नही जाता , बिन बात के तेरा रूठा रहना
मूंद लूं मैं अपनी आंखे... कर देना उस से पहले पहल...।

©Gunjan
  पहल
gunjanjain3224

Gunjan

New Creator

पहल #कविता

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