उमड़ते बादल, जैसे घने हो केश वृक्ष के झरोखे से झाँकता दिनेश देख जिन्हे ठहर से गये अपलक, नैन प्रकृति भी यदा कदा कर देती बैचैन। क्षितिज पर भूमि नभ का मेल कौन है वह, जो रचता यह खेल ©Kamlesh Kandpal #Prkrti