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मुखिया..! कोई धुंध लेकर आंखों में बैठा हो जैसे, मु

मुखिया..!
कोई धुंध लेकर आंखों में बैठा हो जैसे,
मुखिया लौट रहा है अपने घर को वैसे,
कभी बैठता है, कभी चलता है,
रात-रात भर वह न करवट बदलता है।
अपने परिवार की धुंधली तस्वीर लिए,
वह कई बार गिरता, कई बार संभलता है,
एक आस है, एक रोज़ पहुँचूँगा घर,
इसलिए वह अपनी चोट पर थूक मलता है,
पैरों में कभी ज़िम्मेदारियों की बेड़ियां थी,
अब वही आग लिये वह रास्तों पर जलता है,
कभी गालियां छोड़ता है, कभी गाँव बदलता है,
उसके पैर का रक्त बाहर आकर सूख गया,
उसकी आँख लगी और ये जहाँ छूट गया,
एक और मजदूर आज गिरीबी में टूट गया,
कोई अनदेखी थी या थी यह सज़ा गिरीबी की,
शायद गरीबों को सज़ा मिल रही है अमीरी की।
- गिरीश राम आर्य: #commonman #मुखिया #GirishAryah #Nojoto
मुखिया..!
कोई धुंध लेकर आंखों में बैठा हो जैसे,
मुखिया लौट रहा है अपने घर को वैसे,
कभी बैठता है, कभी चलता है,
रात-रात भर वह न करवट बदलता है।
अपने परिवार की धुंधली तस्वीर लिए,
वह कई बार गिरता, कई बार संभलता है,
एक आस है, एक रोज़ पहुँचूँगा घर,
इसलिए वह अपनी चोट पर थूक मलता है,
पैरों में कभी ज़िम्मेदारियों की बेड़ियां थी,
अब वही आग लिये वह रास्तों पर जलता है,
कभी गालियां छोड़ता है, कभी गाँव बदलता है,
उसके पैर का रक्त बाहर आकर सूख गया,
उसकी आँख लगी और ये जहाँ छूट गया,
एक और मजदूर आज गिरीबी में टूट गया,
कोई अनदेखी थी या थी यह सज़ा गिरीबी की,
शायद गरीबों को सज़ा मिल रही है अमीरी की।
- गिरीश राम आर्य: #commonman #मुखिया #GirishAryah #Nojoto