हर तरफ है दहशत का मंजर.. ख़ुदा ख़ैर करें, सबके दिल में समाया है डर.. ख़ुदा ख़ैर करें, मातम पर जाने से भी कतरा रहे हैं सब.. घनी बस्ती में भी तन्हां है घर.. ख़ुदा ख़ैर करें, कांधे भी मयस्सर नहीं यहां रोने के वास्ते.. हर आंख में ठहरा है समंदर.. ख़ुदा ख़ैर करें, अपने ही अपनों को तड़पता छोड़ रहे हैं.. जीते जी हो गए हैं लोग पत्थर.. ख़ुदा ख़ैर करें, न सजी अर्थी..न कंधों पर विदा कर पाए, चिंताएं जल रही हैं अपनों के बगैर.. ख़ुदा ख़ैर करें, वो जो कहते हैं कि हालात काबू में हैं अपने, उनको अब भी ठीक लगता है शहर.. ख़ुदा ख़ैर करें। --अमित कुमार 'जय' ©AMIT KUMAR JAY #covid #India