मेघनाद - सुलोचना (अंतिम संवाद) प्रियशी दो अन्तिम बार विदा , यह सेवक ऋणी तुम्हारा है,, तुम भी जानो मैं भी जानू , यह अन्तिम मिलन हमारा है ၊ मैं मातृ चरण से दूर चला , इसका दारुण सन्ताप मुझे,, पर यदि कर्तव्य विमुख होऊँगा, जीने से लगेगा पाप मुझे, अब हार - जीत का प्रश्न नहीं, जो भी होगा अच्छा होगा ,, मर के ही सही पितु के आगे , बेटे का प्यार सच्चा होगा , भावुकता से कर्तव्य बड़ा , कर्तव्य निभेय बलिदानों से ၊ दीपक जलने की रीति नहीं, थोड़े डर के तुफानों से ,, यह निश्चय कर चला वीर , कोई उसको रोक न पाया ၊ चुपचाप देखता रहा पिता , माता का अर्न्तर भर आया ..। ၊ ❤💞❤ ©Vikas Tiwari रामायण का सबसे चर्चित अंश लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध , और मेघनाद व उनकी पत्नी सुलोचना का अन्तिम संवाद ၊၊ #Sunrise