आसमां पर रंगत फिर से आसमानी आयी हैं हवा बोली शजर पर फिर से जवानी आयी हैं । खुद समंदर भी छोड़ सकता है खारे मिजाज को ठहरी नदियों में भी फिर से रवानी आयी हैं । दश़्तो के बाशिंदे निकल कर आये हैं शहर में शायद उन्हें भी तो याद मिट्टी पुरानी आयी हैं । बस मसीहा बन,ये खुदा बनने की हैं तलब क्यों कुदरत यही तो बताने मुँह जबानी आयी हैं । मुझे असीरी में देख कर तरस आ गया उसको बतियाने चिलमन पर चिड़िया सयानी आयी हैं । बड़ी मुद्दतो के बाद लौट कर आया है बचपन बुजूर्गों की जुबां पर फिर से कहानी आयी है । शहर में बैठ कर अंदाजा नही लगा सकता हूँ गाँव तक जाने में उसे क्या परेशानी आयी हैं । आसमां से उतर कर, घरौंदो में ही ठहर जाते मर्ज लेकर कुछ परिंदो की नादानी आयी हैं। (दश्त-जंगल, असीरी-कैद) लोकेंद्र की कलम से ✍️ #लोकेंद्र की कलम से