ज़िंदगी क्या है, ज़िंदगी एक शब्दों की पहेली है एक अनसुलझी-सी गुत्थी है, जिसको जितना भी सुलझाओ और उलझते जाते है, बस हरवक्त ज़िंदगी में एक नए मोड़ पे आ जाते है, ज़िंदगी के उस मोड़ पे अक़्सर हम चक्कर खा जाते है, आखिर हम ज़िंदगी की बुलबुल्लेय्या में खोयी जाते है, मगर हाँ,, अगर हो इरादें बुलंद अपनें तो बुलबुल्लेय्या में भी अक़्सर रास्तें भी पाया करते है,, =भावना सोनी #अनसुलझी सी ज़िन्दगी अपनी