आज हम घर में कैद हैं,खिड़की पे आ के तो देखो, जो गुनगुनाती थी गीत बचपन में मेरी शान में, तमन्ना है,वहीं गीत आज गा के तो देखो, राह ताका करती थी मेरी,तुम्हारी झुकी निगाहें, बैचेन हूं, उन निगाहों को मिलाकर के तो देखो, फुर्सत कहां मिलती थी उन दिनों,तुमसे मिलने की, गुजार दूंगा तमाम रात,बुलाकर के तो देखो, गुजार दूंगा तमाम उम्र आगोश में तेरे, इक बार अपनी बाहें फैलाकर के देखो कहा करती थी सो जाओ रात बहुत गुजरी, सो जाऊंगा चुपचाप सुलाकर के देखो, जी चाहता है,आज जी भर के रो लूं, भिंगो दूंगा अश्कों से दामन तुम्हारा,रुलाकर के देखो, कर के देखो,