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एक व्यक्ति जब दूसरे व्यक्ति की नफरत, ईर्ष्या, तुलन

एक व्यक्ति जब दूसरे व्यक्ति की नफरत, ईर्ष्या, तुलना को लेता है तब निश्चित ही वह व्यक्ति भी उसी नफरत, ईर्ष्या, तुलना में जीने वाला होता है। जिसे जिस तल की सक्रियता प्रभावित करती है। वह उसी तल के व्यक्तित्व में हैं। इसलिए ही हमारे संबंध, हमारे प्रभाव ...हमारे व्यक्तिव का तल बया करते है। यह बात सिर्फ किरदार के लिए अप्लाई है। प्रभाव के गुलाम हैं जब तक तब तक वह मात्र व्यक्तित्व/कर्ता/किरदार में जीता है। जो बढ़ते कदम में प्रभाव से मुक्त है व्यक्तिव से मुक्त है, जब व्यक्तिव ही नही तो तल की बात ही खत्म। उसके लिए किरदार सिर्फ एक लीला, क्षेत्र है जहा घटना घटती है। व्यक्तिव, चेतना के लिए ही #तल है। जो व्यक्तिव से ऊपर उठ गया है वह किरदार होकर भी किरदार नही रहता। उसे ही बोध कहते है, बोध के कोई तल नही, बोध कोई व्यक्तितगत संपदा नही, बोध की कोई अवस्था नही। अवस्था/तल होती है चेतना व व्यक्तिव के लिए। जब तक होश के लिए होश है तब तक चेतना के तल/अवस्था में है जब मात्र होश है तब बोध का द्वार खुलता हैं।

_____yAsh❤️
एक व्यक्ति जब दूसरे व्यक्ति की नफरत, ईर्ष्या, तुलना को लेता है तब निश्चित ही वह व्यक्ति भी उसी नफरत, ईर्ष्या, तुलना में जीने वाला होता है। जिसे जिस तल की सक्रियता प्रभावित करती है। वह उसी तल के व्यक्तित्व में हैं। इसलिए ही हमारे संबंध, हमारे प्रभाव ...हमारे व्यक्तिव का तल बया करते है। यह बात सिर्फ किरदार के लिए अप्लाई है। प्रभाव के गुलाम हैं जब तक तब तक वह मात्र व्यक्तित्व/कर्ता/किरदार में जीता है। जो बढ़ते कदम में प्रभाव से मुक्त है व्यक्तिव से मुक्त है, जब व्यक्तिव ही नही तो तल की बात ही खत्म। उसके लिए किरदार सिर्फ एक लीला, क्षेत्र है जहा घटना घटती है। व्यक्तिव, चेतना के लिए ही #तल है। जो व्यक्तिव से ऊपर उठ गया है वह किरदार होकर भी किरदार नही रहता। उसे ही बोध कहते है, बोध के कोई तल नही, बोध कोई व्यक्तितगत संपदा नही, बोध की कोई अवस्था नही। अवस्था/तल होती है चेतना व व्यक्तिव के लिए। जब तक होश के लिए होश है तब तक चेतना के तल/अवस्था में है जब मात्र होश है तब बोध का द्वार खुलता हैं।

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