अब बेरोजगारी की मार । हाथों में डिग्री लिए दर-दर भटक रहे , कहने से ज्यादा अब सहनी पड़ती है मार। हर पल आंखों से नींद छिन सी गई है हाथों में कलम रुक सी गई है, हाल ए- दिल क्या बयां करे वो जो बस दिन-रात खुद को निखार रहा । एक चिंगारी दिल के कोने में कहीं धीरे-धीरे सुलग रहा यह सोचकर एक दिन अपना भी आएगा। हर रोज तिनका-तिनका खुद को समेट रहा। अब ना लो इम्तिहान इनके सब्र का ये सब्र जो टूट गया तो हर एक सियासत कांप उठेंगी, आज जहां जमीं है तेरी वहां आसमां भी रूठ जाएगा। ©Ambika Dhami #CannotTolerate #unemployedyouth 😠🙏😡