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" चीख-पुकार " चीख-पुकार सी मची है, मेरे अंदर भी

" चीख-पुकार "

 चीख-पुकार सी मची है, 
मेरे अंदर भी, 
 और बाहर भी|

चीख-पुकार के दलदल में, 
मेैं गोते लगाती हुई |

 समाज में चल रहे
 इंसान रूपी तांडव को, 
मैं देखती हुई |

 विनाश के छोर पर खड़ी, 
इस संपूर्ण सृष्टि को, 
मैं  ताकती हुई |

इस चीख-पुकार के बीच से, 
मैं निकलने की, 
कोशिश करती हुई |

 समाज की हर दुर्घटना को, 
देखकर मैं, 
अपनी लाचारी की, 
आत्मग्लानि से जूझती हुई |

 निर्दयता से आघात पड़े, 
जर्रे जर्रे की पीड़ा को,
मैं महसूस करती हुई |

 समाज की बहोत सी कड़ियां , 
में देखती हुई |

 रसूखदार,
व्यक्ति की ताकत,
निर्बल व्यक्ति और
किसी बेजुबान मासूम को, 
रौंदकर जाती हुई |

 पीड़ा का ऐसा अपार सागर,
जिसे सहन न कर पाने की, 
ज्वाला में
 मेैं जलती हुई|

 खुद से अतिरिक्त, 
दूसरे की पीड़ा को, 
अनुभव न कर पाने वाले ,
संसार रूपी सागर से, 
मैं गुजरती हुई |

 केवल और केवल,
स्वार्थ के दलदल में, 
धंसी इस दुनिया को 
मैं देखती हुई |

समाज की दुर्दशा, 
और पीड़ा का अनुभव,
करते हुए मैं,
अपनी लाचारी और बेबसी से, 
मरती हुई |

" चीख-पुकार सी मची है, 
मेरे अंदर भी और बाहर भी " 

                        -उमंग गंगानिया # चीख पुकार।
" चीख-पुकार "

 चीख-पुकार सी मची है, 
मेरे अंदर भी, 
 और बाहर भी|

चीख-पुकार के दलदल में, 
मेैं गोते लगाती हुई |

 समाज में चल रहे
 इंसान रूपी तांडव को, 
मैं देखती हुई |

 विनाश के छोर पर खड़ी, 
इस संपूर्ण सृष्टि को, 
मैं  ताकती हुई |

इस चीख-पुकार के बीच से, 
मैं निकलने की, 
कोशिश करती हुई |

 समाज की हर दुर्घटना को, 
देखकर मैं, 
अपनी लाचारी की, 
आत्मग्लानि से जूझती हुई |

 निर्दयता से आघात पड़े, 
जर्रे जर्रे की पीड़ा को,
मैं महसूस करती हुई |

 समाज की बहोत सी कड़ियां , 
में देखती हुई |

 रसूखदार,
व्यक्ति की ताकत,
निर्बल व्यक्ति और
किसी बेजुबान मासूम को, 
रौंदकर जाती हुई |

 पीड़ा का ऐसा अपार सागर,
जिसे सहन न कर पाने की, 
ज्वाला में
 मेैं जलती हुई|

 खुद से अतिरिक्त, 
दूसरे की पीड़ा को, 
अनुभव न कर पाने वाले ,
संसार रूपी सागर से, 
मैं गुजरती हुई |

 केवल और केवल,
स्वार्थ के दलदल में, 
धंसी इस दुनिया को 
मैं देखती हुई |

समाज की दुर्दशा, 
और पीड़ा का अनुभव,
करते हुए मैं,
अपनी लाचारी और बेबसी से, 
मरती हुई |

" चीख-पुकार सी मची है, 
मेरे अंदर भी और बाहर भी " 

                        -उमंग गंगानिया # चीख पुकार।