सच्चाई की आग एक अग्निहोत्र है, छल को पहचानना एक अज़ीज अस्त्र, झरने की एक बूंद बुझा गई प्यास, मृगतृष्णा में जो ढूंढ रहे थे स्वाद।। • सादगी • `````` सच्चाई की धूप में बस जलते रहे, आबले पड़ गए फ़िर भी चलते रहे। सादगी ही हमारी सबब बन गई अपने थे जो वो हम को छलते रहे। © Sasmita Nayak