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क्या किस्से सुनाऊ तुम्हें अपनी खेरियत के, गर खुद क

क्या किस्से सुनाऊ तुम्हें अपनी खेरियत के,
गर खुद को लिख दूं दीवार पे कहीं,
तो मुझे मिटाने के लिए बारिशें होने लगती हैं, diler
क्या किस्से सुनाऊ तुम्हें अपनी खेरियत के,
गर खुद को लिख दूं दीवार पे कहीं,
तो मुझे मिटाने के लिए बारिशें होने लगती हैं, diler