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उन्नति का चौथा सोपान है परिश्रम तथा पुरुषार्थ। इन

उन्नति का चौथा सोपान है
परिश्रम तथा पुरुषार्थ। इन दोनों गुणों से रहित व्यक्ति आलसी, प्रमादी तथा दीर्घ-सूत्री होता है। जो उन्नति-पथ में पहाड़ जैसे अवरोध हैं, उन्नति पथ के पथिकों के लिये क्या दिन क्या रात, क्या जाड़ा क्या गरमी, क्या धूप और क्या छाया समान होता है। उसके पास हर समय काम रहता है और हर समय उस काम का समय है। जो आलसी है, प्रमादी और दीर्घ-सूत्री है वह आज के काम को कल टालेगा, दूसरों पर निर्भर रहेगा। ऐसी दशा में उन्नति के शिखर पर चढ़ने का उसका स्वप्न ही रहेगा। बिना पुरुषार्थ, परिश्रम तथा तत्परता के संसार का कोई भी काम नहीं हो सकता। स्वप्न
उन्नति का चौथा सोपान है
परिश्रम तथा पुरुषार्थ। इन दोनों गुणों से रहित व्यक्ति आलसी, प्रमादी तथा दीर्घ-सूत्री होता है। जो उन्नति-पथ में पहाड़ जैसे अवरोध हैं, उन्नति पथ के पथिकों के लिये क्या दिन क्या रात, क्या जाड़ा क्या गरमी, क्या धूप और क्या छाया समान होता है। उसके पास हर समय काम रहता है और हर समय उस काम का समय है। जो आलसी है, प्रमादी और दीर्घ-सूत्री है वह आज के काम को कल टालेगा, दूसरों पर निर्भर रहेगा। ऐसी दशा में उन्नति के शिखर पर चढ़ने का उसका स्वप्न ही रहेगा। बिना पुरुषार्थ, परिश्रम तथा तत्परता के संसार का कोई भी काम नहीं हो सकता। स्वप्न
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