ऐसी क्रीड़ा जो स्पष्ट दिखे, जैसे जल पर स्थिर तेल हो। पर फिर भी जो हो समझ से बाहर, सोचने में सब फेल हो। ये टोपियों का टोपियों के विरुद्ध अनोखा खेल है। जहां बाद खेल के, टोपियों में ही आपसी मेल है। टोपियां विभिन्न रंगों की, पहनने वाले भी रंग बदलते है। और बाद जीत के जाने क्यूं ये चाल दूसरी चलते हैं। ये टोपियां जो पहनी कम, पहनाई ज्यादा जाती हैं। हैं टोपियां जो इंसान को इंसान से अलग बताती हैं। दर्शक गण हैं सुध-बुध खोए, कुछ तो लेटे बेहोश हैं। ये टोपियों की मिली भगत है उन्हीं का सारा दोष है। #आशुतोष_मिश्रा ©Ashutosh mishra #Politics