इश्क़ ख़लीश निगाहों की 🙁 भुला के रंजिश-ओ-ग़म जिसे अपलक मैं जी न सकी वो काफ़िर सी दास्तां रूबरू जिंदगी की तरह है । तेरे इश्क़ की गहराई में डूबी रही कुछ इस तरह । तेरे लफ्ज़ भी न पढ़ सकी यूँ रुसवाईयाँ तुझ से मिली आ अब लौट चलें