तेरे इस शहर के कोलाहल से निकलने को जी चाहता है आज फिर पुरानी राहों पर निकलने को जी चाहता है। ऊब के दौर में, कतरा ए सुकूँ, तलाशने को जी चाहता है कुछ दूर चली तन्हा तो जाना, कि क्या तलाशने को जी चाहता है। पटरीयों सी बिखरी, यादों की गुल्लक तलाशने को जी चाहता है बीते हुए लम्हों से, कुछ यादों के मोती तराशने को जी चाहता है। आओ ना!...देखो तो कितना हसीं लगता है वो नज़ारा जब, शबनम के गिरते मोती, हाथों पर सँभालने को जी चाहता है। ♥️ Challenge-510 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।