इश्क़ मुकाम तक पूरा पाते चाहे मीरा का जोग बताते या पग राधा कि धूल सर चढाते इश्क़ अधूरा भी चूम ही लेता सारे मायने बदल ही जाते ग़र यहॉ मुगल न आते संस्कार संस्कृति में ही था