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घर की जिम्मेदारी समझते समझते कब खुद को समझना भूल ग

घर की जिम्मेदारी समझते समझते
कब खुद को समझना भूल गई
ये बात समझ ही ना आई
बचपन से मजबूरियां परेशानियां
कब सर पर चढ़ उम्र गुजार गई
ये बात समझ ही ना आई
समझ आया तो बस इतना
कि कैसे सबको खुश रखना है
कैसे सबकी खुशी के लिए 
खुद की खुशी को मारना है
कि कैसे सबके लिए खुद का अस्तित्व मिटाना है

©नीति.......
  #मेरा #अस्तित्व  Niaa_choubey Saad Rudaulvi Prince_" अल्फाज़" ख्वाहिश _writes सुनहरे पल  #शुन्य राणा Megha saini गरूड़ा दुर्लभ "दर्शन"