पुष्प शुष्क सा , पड़ा था एक । मुरझाया सा,सिकुड़ा सा मेरी पुस्तक के पृष्ठ में। मन बैचैन होगया , उसको देखकर। यही तो उसकी एक निशानी थी, जो मेरे पास बाकी थी। और उसका भी क्या हश्र कर दिया था मैंने। कोस कर खुद को, मलाल में डूबकर। उसको उठाकर डाल दिया मैंने , दिल के लिफाफे में। हमेशा के लिए सुरक्षित, और आबाद। ©S ANSHUL'यायावर' लिफाफा