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देह भी है गेह भी है अनगिन चाह भी है माया की राह भी

देह भी है
गेह भी है
अनगिन चाह भी है
माया की राह भी है
जीवित देह में  चेतना मृत है
भोग विष है, कहाँ अमृत है।
माया की लपेट जंजीर
हम सदा रहेंगे अधीर।
आओ, करें कुछ शोध
कि जागृत हो जाये बोध।

©Kamlesh Kandpal
  #chetna