ये खता मैं बार बार करता हूं इंसान हूं इंसानियत से प्यार करता हूं। न मंदिर न मस्जिद न चर्च गुरुद्वारे, न हिंदू न मुस्लिम न सिक्ख इसाई इन सब धर्मों से मैं इनकार करता हूं बस इंसान हूं इंसानियत से प्यार करता हूं। जात पात छोटा बड़ा, निर्धन हो या फिर अमीर बड़ा, इन सब शब्दों का मैं त्रिस्कार करता हूं इंसान हूं इंसानियत से प्यार करता हूं। चाहे कोई ईमान हो चाहे कोई बेईमान हो, चाहे कोई हो लालची वो बस इक इन्सान हो, अपने दर पे मैं सबका सत्कार करता हूं इंसान हूं इंसानियत से प्यार करता हूं। चाहे मुझे कोई त्याग दे चाहे मेरा कोई साथ दे, चाहे मुझे कोई ताप दे चाहे मुझे अभिशाप दे, मैं हंस के सब कुछ स्वीकार करता हूं, बस इंसान हूं इंसानियत से प्यार करता हूं। महेन्द्र प्रताप ©Mahendra Pratap #BeHuman #alone