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तुम शायद किसी रूहानी ग़ज़ल सी, हर बार इक नए मायने

तुम शायद किसी रूहानी ग़ज़ल सी,
हर बार इक नए मायने के साथ।
जब भी पढ़ता हूं रहता हूं परेशान,
दर्द भी और दवा भी , और एक साथ। 
गम में देखू तो शुकून पड़ जाए,
जैसे प्यासे को पानी की बू पड़ जाए। 
जैसे किसी मुसाफिर को मंजिल जाए
या किसी भटकी कश्ती को किनारा।

©AshuAkela #mountain #Ashu $akela #Poetry #platform #SAD #status #story #Love #Shayar
तुम शायद किसी रूहानी ग़ज़ल सी,
हर बार इक नए मायने के साथ।
जब भी पढ़ता हूं रहता हूं परेशान,
दर्द भी और दवा भी , और एक साथ। 
गम में देखू तो शुकून पड़ जाए,
जैसे प्यासे को पानी की बू पड़ जाए। 
जैसे किसी मुसाफिर को मंजिल जाए
या किसी भटकी कश्ती को किनारा।

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ashuakela5416

AshuAkela

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