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कौन जाने पीर भीतर की दर्द शोला बनकर भड़कता है जब

कौन जाने 
पीर भीतर की
दर्द शोला बनकर भड़कता है
जब गिर जाते है दो मोती आंखों से
तब जाकर कही चैन कलेजे को पड़ता है।
नींद की कुछ खबर नहीं
अब तो रातों से रुसवाई है
मिलकर अक्सर कह देते हैं लोग
तेरी अभी वक्त से लडाई है।

©Akansha
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