बढ़ते जाना कभी रुकना नहीं इक पल, सदा बढ़ते चले जाना। कभी गिरना नहीं नीचे, सदा चढ़ते चले जाना। समर ये जिंदगी हरक्षण, यहाँ लड़ते चले जाना। हवा विपरीत हो जाये, मगर अड़ते चले जाना। सदा कदमों निशां अपने, यहाँ गढ़ते चले जाना। लिखा जो हर्फ़ जीवन का, प्रियम पढ़ते चले जाना। ©पंकज प्रियम बढ़ते चले जाना