हम कुर्सी पर सम्मान से बिठाते हैं और तुम कुर्सी खींच लेते हो कुर्सी की खींचा-तानी में मुट्ठी भींच लेते हो और चढ़ा लेते हो भृकुटि उतारने लगते हो सारे मुखौटे एक पर एक...सब उघर जाते हैं फिर समेटते रहते हो अपने ये टुकड़े पाठशाला में ये तो नहीं पढ़ाया गया छल,छद्म,दम्भ और लालच कहाँ था उस झोले में... किताबें थी खजाने भर उसमे तो थी दुनियाँ रंगीन और विस्तृत...फूलों और तितलियों की सपने देखना सिखाती थी वो कहानियाँ बेनिहा मासूम सपनों का कत्ल तो नहीं आओ! बैठो तसल्ली से कुर्सी पर पर एक वायदे के साथ कि सच कर दोगे वो दुनियाँ जिसे तुम्हारे भरम ने किताबी बना दिया है और फिर से देखोगे सपना और सपने बीजोगे... धान-पान आसमान सब सींचोगे हर एक हस्ताक्षर रख दोगे गुरु-दक्षिणा चौड़ा हो जाएगा हर शिक्षक का सीना और माँ का आँचल हो जाएगा आकाश जितना #administration