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क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।।

क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।।
जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। 

और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।।

(read full poem in caption)

©पारूल चौधरी एक हादसा ही तो था,
फिर उस पर इतना बवाल क्यों ?
जो खामोशी से चला गया,
उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ? 

क्यों फर्क पड़े हमें कि,
उसको क्या-क्या खला होगा ?
यूँ हवा में झूलने से पहले,
क्यों ना हम ये मान लें कि वह कोई बुजदिल कायर था।।
जिंदगी के रंगमंच का,एक असफल नायक था।। 

और क्यों न हम ये मान लें कि,कायर वो नहीं, हम हैं, ये दोगला समाज है।।

(read full poem in caption)

©पारूल चौधरी एक हादसा ही तो था,
फिर उस पर इतना बवाल क्यों ?
जो खामोशी से चला गया,
उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ? 

क्यों फर्क पड़े हमें कि,
उसको क्या-क्या खला होगा ?
यूँ हवा में झूलने से पहले,

एक हादसा ही तो था, फिर उस पर इतना बवाल क्यों ? जो खामोशी से चला गया, उसकी मौत पर कोई सवाल क्यों ? क्यों फर्क पड़े हमें कि, उसको क्या-क्या खला होगा ? यूँ हवा में झूलने से पहले, #SushantSinghRajput #कविता #paruldiaries