तुम्हारी होठों की तलब(ग़ज़ल) खींच लाती है अक्सर गली में तेरे पायल की झंकार मुझें, तेरे पैरहन की ख़ुशबू ने कर रखा है जीना दुश्वार मुझें। तुम्हारी होठों की तलब में भूल बैठा हूँ सारी दुनिया को मैं, ख़ुद की बर्बादी के नज़र आने लगे है हर आसार मुझें। चलते चलते अब राहों के कंकड़ से उलझ जाया करता हूँ, कंकड़ की बात छोड़िए नज़र नही आती कोई दीवार मुझें। यार कहते थे कि डूब जाएगा इक रोज़ इश्क़ के दरिया में, डूबने लगा तो उसका हाथ ही नज़र आया पतवार मुझें। #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जन्मदिनकोराकाग़ज़ #kkजन्मदिनमहाप्रतियोगिता #kkतेरेहोंठोंकीतलब #yourquotedidi #yourquotebaba #आशुतोष_अंजान