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ज़िंदादिल थी वो , हमेशा बस मुस्कुराती थी , हर लम्हे

ज़िंदादिल थी वो ,
हमेशा बस मुस्कुराती थी ,
हर लम्हे को जीती ,
हर पल का लुत्फ़ उठाती थी ,
फ़िक़्र का जिसे कोई इल्म नहीं ,
अपनी आँखों में बस ख़्वाब सजाती थी ,
नन्हे नन्हे क़दमों से चलना सीखती ,
बात साफ़ करने में अभी उसकी ज़बां लड़खड़ाती थी ,
मासूमियत की हद तक मासूम थी 'ऐमन",
अभी नापाक इरादे भांप न पाती थी ,
तीन साल की उम्र में हैवानियत समझ न पाई ,
शर्मसार हुई इंसानियत फिर से ,पर उस दरिंदे को रत्ती भर भी शर्म न आई ,
एक बचपन को बर्बाद करके ,
उसने अपनी जवानी की आग बुझाई ,
क्या मूँद ली है आंखे उन बेशर्म हुक़्मरानों ने ,
जो आये थे सत्ता में ,बेटियों को बचाने को ,
अरे कब तक तुम यूँही  महज़ अफ़सोस जताते रहोगे ,
कब तक इन मासूमो की अस्मत लुटवाते रहोगे ,
कर दो ऐलान की अब कोई भी बेटी ख़ौफ़ न खायेगी ,
अब हर दरिंदे को उसके कर्मो की ख़ौफ़नाक  सजा दी जाएगी ,
तब होंगे हमारी आज़ादी के मायने पूरे ,
जब हर बेटी सड़को पर बेख़ौफ़ घूम पायेगी ,
जब हर बेटी सड़को पर बेख़ौफ़ घूम पायेगी....
dedicated to Aiman zehra by Mubashira Ali dedicated to aiman zehra....
ज़िंदादिल थी वो ,
हमेशा बस मुस्कुराती थी ,
हर लम्हे को जीती ,
हर पल का लुत्फ़ उठाती थी ,
फ़िक़्र का जिसे कोई इल्म नहीं ,
अपनी आँखों में बस ख़्वाब सजाती थी ,
नन्हे नन्हे क़दमों से चलना सीखती ,
बात साफ़ करने में अभी उसकी ज़बां लड़खड़ाती थी ,
मासूमियत की हद तक मासूम थी 'ऐमन",
अभी नापाक इरादे भांप न पाती थी ,
तीन साल की उम्र में हैवानियत समझ न पाई ,
शर्मसार हुई इंसानियत फिर से ,पर उस दरिंदे को रत्ती भर भी शर्म न आई ,
एक बचपन को बर्बाद करके ,
उसने अपनी जवानी की आग बुझाई ,
क्या मूँद ली है आंखे उन बेशर्म हुक़्मरानों ने ,
जो आये थे सत्ता में ,बेटियों को बचाने को ,
अरे कब तक तुम यूँही  महज़ अफ़सोस जताते रहोगे ,
कब तक इन मासूमो की अस्मत लुटवाते रहोगे ,
कर दो ऐलान की अब कोई भी बेटी ख़ौफ़ न खायेगी ,
अब हर दरिंदे को उसके कर्मो की ख़ौफ़नाक  सजा दी जाएगी ,
तब होंगे हमारी आज़ादी के मायने पूरे ,
जब हर बेटी सड़को पर बेख़ौफ़ घूम पायेगी ,
जब हर बेटी सड़को पर बेख़ौफ़ घूम पायेगी....
dedicated to Aiman zehra by Mubashira Ali dedicated to aiman zehra....