बने फिरते थे ख़ैरख्वाह जो क़ौम के मेरे दिया जला रहे हैं वो अब लाश पर मेरे हम ने तो पूरअम्न माहौल बना रख्खा है खुशियाँ मना रहे हैं वो हर बात पर मेरे ©अली आलवी"अल्फ़ाज़" #rekhta