***बरखा में मिलन की आस *** आईल ई बरखा के बहार हो , पिया अईले ना घरवा। निमन ना लागे ई फुहार हो पिया बिन मोर अंगनवा । आईल इ कईसन बैरन बिपतिया, बसवो न चले ,ना चले रेल गड़िया, बीती जाई का सावन के खूमार हो, निक लागे ना अंगनवा। आईल ई बरखा के बहार हो , पिया अईले ना घरवा। जब- जब बरसे ई बैरन बदरिया , तब -तब याद आवे पिया के सुरतिया, दिनवा त कट जाला कटे ना रतिया, अब कैसे जियायी दिन -रात हो, बीतल जाला बरखा के महिनवा। आईल ई बरखा के बहार हो , पिया अईले ना घरवा। बरसे ला बदरा त भीगे बदनवा, उपर से पुरूवा सिहरावेला तनवा , टूटेला देहिया, काटे दौरे बिछवनवा , कब अईहे सजना हमार हो, अब ई दरद ना सहाता। आईल ई बरखा के बहार हो , पिया अईले ना घरवा। **नवीन कुमार पाठक ** #बरखा में मिलन की आस #