बंद कमरे में बैठकर हमेशा यादों में खोया रहा दौर-ए-वक़्त की उन सारी बातों में खोया रहा अजीब कशिश थी उस जमाने में अपनी अपनी दिन भूल गया सभी पर उन रातों में खोया रहा निहारता रहा वो चाँद अपनी ही मकान से मैं जिक़्र था धुँधला तो किताबों में खोया रहा मैंने लिखे थे पन्ने कुछ उसके बाबत में यहाँ अनसूनी दास्ताँ के सारी बाबों में खोया रहा उम्र के इस पड़ाव पर भी याद कर लेता हूँ चुने बहते आब तो कभी आबों में खोया रहा ©Vishal Pandhare @nojoto #nojoto