बेनामी दूरियों की झिझक सन्नाटा और सोच की राह पर (कृपया अनुशीर्षक देख लें) बेनामी दुरियों की झिझक सन्नाटा और सोच की राह पर अकेला पर भि्ज्ञ और संतुष्ट मैं चाहत मे खंगालता आयाम,पर अस्तित्व की खोज मे दिलचस्पी के स्वार्थ को झूठलाता मैं पुर्ण संतुष्टी की ओर लगभग सार भूलकर