विपदा! तू भी देन, श्री हरि की, सच्चा साथ निभाती..... ज्ञानचक्षु! जो तुम हो खोलती, जीवन मर्म सिखाती....। विपदा! तू भी देन..... बचपन! वैभव भरा किसी का, फूल सा पाला जाये.... कोई पग-पग ठोकर खाता, तू जो नाच नचाये.....। विपदा! तू भी देन..... कोई पल तो मिले हर्ष का, मन सन्ताप मिटाये... या इतना करदे तू करुणा, तुझमें मन रम जाये......। विपदा! तू भी देन..... विनती है, मत आना "कुमति" संग, पाप, लोभ मत लाना... देना सन्त जनों की संगत, और भजन का बाना.....। विपदा! तू भी देन..... तुम्ही हो, जो मनुज बनाती, जीवन दर्शन सहज दिखाती, ज्ञानीजन खोजत शास्त्रों में, तुम अनुभव से सिखाती...। विपदा! तू भी देन..... दान-पुण्य, और धर्म-कर्म क्या? दया, शील, मृदुवचन, प्रेम क्या? सबका दुःख अपना सा लागे, यही श्री हरि की थाती....। विपदा! तू भी देन..... ©Tara Chandra #विपदा