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नवरात्रि के द्वितीय दिवस में, नव दुर्गा के दूजे र


नवरात्रि के द्वितीय दिवस में, नव दुर्गा के दूजे रूप मां ब्रह्मचारिणी का करते हैं वंदन।
ब्रह्मा जी के मन को भाती, ज्ञान सभी को सिखलाती हैं, करते हैं हम उनका नमन।

श्वेतांबर तन पर धारण करती उज्जवला सी लगती, गले रुद्राक्ष की माला है शोभा पाती।
मां कठिन क्षणों में संबल देती, दाएं कर में जपमाला, बायें कर में कमंडल लिए रहती।

शिव शंकर को वर रूप में पाने की खातिर, हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या कर डाली।
कठिन तपस्या के कारण ही, ये तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित की गयीं।

हजारों वर्षों तक मात्र फल-फूल खाकर और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर निर्वाह किया।
कई सहस्त्र वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर, कठोर तपस्या को निरंतर किया।

कुछ वर्ष पत्ते खाकर बिताए, पत्तों को खाना छोड़ने के कारण ही अपर्णा कहलायीं।
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी उन्हें पति के रूप में वरदान स्वरूप प्राप्त हुए।

ब्रह्मचारिणी में ब्रह्म का अर्थ तपस्या है, यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देता है।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
-"Ek Soch"

    #yqbaba #yqdidi  #myquote #openforcollab  #collabwithmitali #नवदुर्गा_के_नौ_स्वरूप #maa_brahmcharini_namah


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ब्रह्मा जी के मन को भाती, ज्ञान सभी को सिखलाती हैं, करते हैं हम उनका नमन।

श्वेतांबर तन पर धारण करती उज्जवला सी लगती, गले रुद्राक्ष की माला है शोभा पाती।
मां कठिन क्षणों में संबल देती, दाएं कर में जपमाला, बायें कर में कमंडल लिए रहती।

शिव शंकर को वर रूप में पाने की खातिर, हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या कर डाली।
कठिन तपस्या के कारण ही, ये तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित की गयीं।

हजारों वर्षों तक मात्र फल-फूल खाकर और सौ वर्षों तक जमीन पर रहकर निर्वाह किया।
कई सहस्त्र वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर, कठोर तपस्या को निरंतर किया।

कुछ वर्ष पत्ते खाकर बिताए, पत्तों को खाना छोड़ने के कारण ही अपर्णा कहलायीं।
तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी उन्हें पति के रूप में वरदान स्वरूप प्राप्त हुए।

ब्रह्मचारिणी में ब्रह्म का अर्थ तपस्या है, यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देता है।
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
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