इतनी तो ना उलझी थी जिंदगी अपनी जितनी सुलझाने में गठान आ गयीं बहुत भर भर के लीं थीं साँसें मैंने ना जाने किस किस के काम आ गयीं मोहब्बत की तासीर सबो के लिए अलग है जिसकी जैसी थीं तवियत, वैसी ताबीज आ गयीं मिला के देख कभी मिट्टी में क़भी लहू अपना जैसी बोई थी नियत ,वैसी फसल आ गयीं वो आते ही नही कभी मेरे अंजुमन की तरफ ये सुबह कैसी है,शाम को ही मेरे घर आ गयी गिनती में तो सब एक से बढ़ कर एक निकले हम हिसाब में कच्चे थे वो खेल खराब कर गयी